मानव के विकास में, अर्थात मानव-सभ्यता के विकास में, वाणी के बाद लेखन का ही सबसे अधिक महत्व है। अन्य पशुओं से आदमी को इसीलिए श्रेष्ठ माना जाता है कि वह वाणी द्वारा अपने मनोभावों को व्यक्त कर सकता है। किंतु मानव का बहुमुखी विकास इस वाणी को लिपिबद्ध करने की कला के कारण ही हुआ। भारत में विभिन्न भाषाओं के साथ-साथ विभिन्न लिपियाँ भी मौजूद हैं, तो चलिए आज जानते हैं ‘गुप्त लिपि’ की उत्पत्ति के बारे में।
गुप्त लिपि (जिसे गुप्त ब्रह्मी लिपि भी कहते हैं) भारत में गुप्त साम्राज्य के काल में संस्कृत लिखने के लिए प्रयोग की जाती थी। गुप्त साम्राज्य भौतिक समृद्धि और महान धार्मिक और वैज्ञानिक विकास का दौर था। इसने आगे चलकर देवनागरी, गुरुमुखी, तिब्बतन और बंगाली-असमिया लिपियों को जन्म दिया। गुप्त लिपि अपनी पूर्ववर्ती और उत्तराधिकारी लिपियों के समान ही है, बस केवल वर्णिम और विशेषक के आकार और रूप अलग-अलग होते हैं।

चौथी शताब्दी में अधिक तेज़ी और सौंदर्य पूर्ण रूप से लिखने के परिणामस्वरूप इसकी वर्णमाला ने अधिक सुन्दर और सममित रूप लेना शुरू कर दिया। वहीं यह लिपि साम्राज्य भर में और अधिक भिन्नता भरी हो गई, क्षेत्रीय बदलावों के साथ, इन्हें मोटे तौर पर तीन, चार या पांच श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया। हालाँकि, एक निश्चित वर्गीकरण स्पष्ट नहीं है, क्योंकि किसी भी शिलालेख में एक विशेष प्रतीक को भी अलग-अलग रूप से लिखा हुआ हो सकता है।
गुप्त लिपि से लिखे गए शिलालेख ज़्यादातर लोहे या पत्थर के खंभों पर, और गुप्त वंश के सोने के सिक्कों पर पाए जाते हैं। वहीं इनमें सबसे महत्वपूर्ण ‘इलाहाबाद प्रशस्ति’ था, जिसे समुद्रगुप्त के मंत्री हरिशेना द्वारा निर्मित किया गया था जो समुद्रगुप्त के शासनकाल का वर्णन करता है। गुप्त लिपि अशोक के इलाहाबाद स्तंभ पर भी अंकित है। वहीं गुप्त सिक्कों का अध्ययन 1783 में सोने के सिक्कों के एक ढेर की खोज के साथ शुरू हुआ था। कई अन्य ऐसे ढेरों की भी खोज की गई, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण 1946 में खोजा गया बयाना (राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित) ढेर था, जिसमें गुप्त राजाओं द्वारा जारी किए गए 2000 से अधिक सोने के सिक्के शामिल थे।

गुप्त साम्राज्य के कई सिक्के किंवदंतियों के अभिलेख या ऐतिहासिक घटनाओं को चिह्नित करते हैं। यह ऐसा करने वाले पहले भारतीय साम्राज्यों में से एक थे, जो कि शायद इस साम्राज्य की अभूतपूर्व समृद्धि के परिणामस्वरूप था। पहले गुप्त राजा चंद्रगुप्त प्रथम से लेकर लगभग प्रत्येक गुप्त राजा द्वारा सिक्के जारी किए गए थे। स्तंभों आदि पर लिखी लिपियों की तुलना में सिक्के पर लिपियों की एक अलग प्रकृति देखी गई है, जो कि शायद क्षेत्रीय विविधताओं को सिक्कों पर प्रकट होने से रोकने के लिए किया गया था। इसके अलावा एक और कारण यह है कि, चांदी के सिक्कों पर सीमित जगह थी।